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भारतीय संविधान ( Constitution of India )
भारतीय संविधान ( Constitution of India ) में 25 भागों में 448 लेख और 12 अनुसूचियां और 5 परिशिष्ट हैं। यह दुनिया का सबसे लंबा संविधान है। भारत का संविधान बी.आर अम्बेडकर की अध्यक्षता में मसौदा समिति के तहत लिखा गया था।
संविधान दिवस, जिसे Constitution Day के रूप में भी जाना जाता है, को हर साल 26 नवंबर को मनाया जाता है, जिस दिन भारत के संविधान को अपनाया गया था। संविधान का अंगीकरण 26 नवंबर, 1949 को हुआ, यह 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ
भारतीय संविधान ( Constitution of India ) के महत्वपूर्ण लेखों की सूची
भाग 1 (अनुच्छेद 1-4) – संघ और उसका राज्य क्षेत्र।
अनुच्छेद (Article) 1 – संघ का नाम और राज्य क्षेत्र।
(1) भारत, अर्थात् इंडिया, राज्यों का संघ होगा।
(2) राज्य और उनके राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।
(3) भारत के राज्यक्षेत्र में,
(क) राज्यों के राज्यक्षेत्र,
(ख) पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट संघ राज्यक्षेत्र, और
(ग) ऐसे अन्य राज्यक्षेत्र जो अर्जित किए जाएँ, समाविष्ट होंगे।
अनुच्छेद (Article) 2 – नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
संसद, विधि द्वारा, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी।
अनुच्छेद (Article) 3 – नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन
संसद, विधि द्वारा–
(क) किसी राज्य में से उसका राज्यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी;
(ख) किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी;
(ग) किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी;
(घ) किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी;
(ङ) किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी:
भाग 2 (अनुच्छेद 5-11) – नागरिकता
अनुच्छेद (Article) 5 – संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता
इस संविधान के प्रारंभ पर प्रत्येक व्यक्ति जिसका भारत के राज्यक्षेत्र में अधिवास है और—
(क) जो भारत के राज्यक्षेत्र में जन्मा था, या
(ख) जिसके माता या पिता में से कोई भारत के राज्यक्षेत्र में जन्मा था, या
(ग) जो ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले कम से कम पाँच वर्ष तक भारत के राज्यक्षेत्र में मामूली तौर से निवासी रहा है, भारत का नागरिक होगा।
अनुच्छेद (Article) 6 – पाकिस्तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
अनुच्छेद 5 में किसी बात के होते हए भी, कोई व्यक्ति जिसने ऐसे राज्यक्षेत्र से जो इस समय पाकिस्तान के अंतर्गत है,
भारत के राज्यक्षेत्र को प्रव्रजन किया है, इस संविधान के प्रारंभ पर भारत का नागरिक समझा जाएगा–
(क) यदि वह अथवा उसके माता या पिता में से कोई अथवा उसके पितामह या पितामही या मातामह या मातामही में से कोई (मूल रूप में यथा अधिनियमित) भारत शासन अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत में जन्मा था; और
(ख) (i) जबकि वह व्यक्ति ऐसा है जिसने 19 जुलाई, 1948 से पहले इस प्रकार प्रव्रजन किया है तब यदि वह अपने प्रव्रजन की तारीख से भारत के राज्यक्षेत्र में मामूली तौर से निवासी रहा है; या
(ii) जबकि वह व्यक्ति ऐसा है जिसने 19 जुलाई, 1948 को या उसके पश्चात् इस प्रकार प्रव्रजन किया है तब यदि वह नागरिकता प्राप्ति के लिए भारत डोमिनियन की सरकार द्वारा विहित प्ररूप में और रीति से उसके द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले ऐसे अधिकारी को, जिसे उस सरकार ने इस प्रयोजन के लिए नियुक्त किया है, आवेदन किए जाने पर उस अधिकारी द्वारा भारत का नागरिक रजिस्ट्रीकृत कर लिया गया है :
परंतु यदि कोई व्यक्ति अपने आवेदन की तारीख से ठीक पहले कम से कम छह मास भारत के राज्यक्षेत्र में निवासी नहीं रहा है तो वह इस प्रकार रजिस्ट्रीकृत नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद (Article) 10 – नागरिकता के अधिकारों का बना रहना
प्रत्येक व्यक्ति, जो इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी के अधीन भारत का नागरिक है या समझा जाता है, ऐसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, जो संसद द्वारा बनाई जाए, भारत का नागरिक बना रहेगा।
अनुच्छेद (Article) 11 – संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना
इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों की कोई बात नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के तथा नागरिकता से संबंधित अन्य सभी विषयों के संबंध में उपबंध करने की संसद की शक्ति का अल्पीकरण नहीं करेगी।
भाग 3 (अनुच्छेद 12-35) – मूल अधिकार
अनुच्छेद (Article) 12 – परिभाषा
इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, ”राज्य” के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान-मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी हैं।
अनुच्छेद (Article) 13 – मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ
(1) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त सभी विधियाँ उस मात्रा तक शून्य होंगी जिस तक वे इस भाग के उपबंधों से असंगत हैं।
(2) राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती है या न्यून करती है और इस खंड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी।
(3) इस अनुच्छेद में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,–
(क) ”विधि” के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में विधि का बल रखने वाला कोई अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूढ़ि या प्रथा है ;
(ख) ”प्रवृत्त विधि” के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले पारित या बनाई गई विधि है जो पहले ही निरसित नहीं कर दी गई है, चाहे ऐसी कोई विधि या उसका कोई भाग उस समय पूर्णतया या विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवर्तन में नहीं है।
(4) इस अनुच्छेद की कोई बात अनुच्छेद 368 के अधीन किए गए इस संविधान के किसी संशोधन को लागू नहीं होगी।
भाग 3.1 (अनुच्छेद 14-18) – समता का अधिकार
अनुच्छेद (Article) 14 – विधि के समक्ष समता
राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
अनुच्छेद (Article) 15 – धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध
(1) राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध के केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
(2) कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर–
(क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या
(ख) पूर्णतः या भागतः राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग,
के संबंध में किसी भी निर्योषयता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
(4) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
अनुच्छेद (Article) 16 – लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता
(1) राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी।
(2) राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात संसद को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र की सरकार के या उसमें के किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन वाले किसी वर्ग या वर्र्गों के पद पर नियोजन या नियुक्ति के संबंध में ऐसे नियोजन या नियुक्ति से पहले उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती है।
(4) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
(4क) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, राज्य के अधीन सेवाओं में किसी वर्ग या वर्गों के पदों पर, पारिणामिक ज्येष्ठता सहित,प्रोन्नति के मामलों मेंआरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
(4ख) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को किसी वर्ष में किन्हीं न भरी गई ऐसी रिक्तियों को, जो खंड (4) या खंड (4क) के अधीन किए गए आरक्षण के लिए किसी उपबंध के अनुसार उस वर्ष में भरी जाने के लिए आरक्षित हैं, किसी उत्तरवर्ती वर्ष या वर्षों में भरे जाने के लिए पृथक् वर्ग की रिक्तियों के रूप में विचार करने से निवारित नहीं करेगी और ऐसे वर्ग की रिक्तियों पर उस वर्ष की रिक्तियों के साथ जिसमें वे भरी जा रही हैं, उस वर्ष की रिक्तियों की कुल संख्या के संबंध में पचास प्रतिशत आरक्षण की अधिकतम सीमा का अवधारण करने के लिए विचार नहीं किया जाएगा।
(5) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी जो यह उपबंध करती है कि किसी धार्मिक या सांप्रदायिक संस्था के कार्यकलाप से संबंधित कोई पदधारी या उसके शासी निकाय का कोई सदस्य किसी विशिष्ट धर्म का मानने वाला या विशिष्ट संप्रदाय का ही हो।
अनुच्छेद (Article) 17 – अस्पृश्यता का अंत
”अस्पृश्यता” का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है। ”अस्पृश्यता” से उपजी किसी निर्योषयता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।
अनुच्छेद (Article) 18 – उपाधियों का अंत
(1) राज्य, सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।
(2) भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
(3) कोई व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।
(4) राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन किसी रूप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।
भाग 3.2 (अनुच्छेद 19-22) – स्वातंत्र्य-अधिकार
अनुच्छेद (Article) 19 – वाक्-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण
1) सभी नागरिकों को–
(क) वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,
(ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
(ग) संगम या संघ बनाने का,
(घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,
(ङ) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, और
(छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार होगा।
(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी ।
(3) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर भारत की प्रभुता और अखंडता याट लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(4) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर भारत की प्रभुता और अखंडता याट लोक व्यवस्था या सदाचार के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(5) उक्त खंड के उपखंड (घ) और उपखंड (ङ) की कोई बात उक्त उपखंडों द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(6) उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी और विशिष्टतया उक्त उपखंड की कोई बात–
(i) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने के लिए आवश्यक वृत्तिक या तकनीकी अर्हताओं से, या
(ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण में किसी निगम द्वारा कोई व्यापार, कारबार, उद्योग या सेवा, नागरिकों का पूर्णतः या भागतः अपवर्जन करके या अन्यथा, चलाए जाने से,
जहाँ तक कोई विद्यमान विधि संबंध रखती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या इस प्रकार संबंध रखने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
अनुच्छेद (Article) – 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
1) कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए तब तक सिद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि उसने ऐसा कोई कार्य करने के समय, जो अपराध के रूप में आरोपित है, किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है या उससे अधिक शास्ति का भागी नहीं होगा जो उस अपराध के किए जाने के समय प्रवृत्त विधि के अधीन अधिरोपित की जा सकती थी।
(2) किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित और दंडित नहीं किया जाएगा।
(3) किसी अपराध के लिए अभियुक्त किसी व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद (Article) 21 – प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण
किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
भाग 3.3 (अनुच्छेद 23-24) – शोषण के विरुद्ध अधिकार
अनुच्छेद (Article) 23 – मानव के दुर्व्यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध
(1) मानव का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलात्श्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी। ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
अनुच्छेद (Article) 24 – कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध
चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।
भाग 3.4 (अनुच्छेद 25-28) – धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद (Article) 25 – अंतःकरण की और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता
(1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्नय तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा।
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विद्यमान विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या राज्य को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो–
(क) धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनैतिक या अन्य लौकिक क्रियाकलाप का विनियमन या निर्बन्धन करती है;
(ख) सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए या सार्वजनिक प्रकार की हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं को हिंदुओं के सभी वर्गों और अनुभागों के लिए खोलने का उपबंध करती है।
स्पष्टीकरण 1–कृपाण धारण करना और लेकर चलना सिक्ख धर्म के मानने का अंग समझा जाएगा ।
स्पष्टीकरण 2–खंड (2) के उपखंड (ख) में हिंदुओं के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत सिक्ख, जैन या बौद्ध धर्म के मानने वाले व्यक्तियों के प्रति निर्देश है और हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं के प्रति निर्देश का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा।
अनुच्छेद (Article) 26 – धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता
लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्नय के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को —
(क) धार्मिक और पूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का,
(ख) अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने का,
(ग) जंगम और स्थावर संपत्ति के अर्जन और स्वामित्व का, और
(घ) ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का, अधिकार होगा।
अनुच्छेद (Article) 27 – किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता
किसी भी व्यक्ति को ऐसे करों का संदाय करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा जिनके आगम किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि या पोषण में व्यय करने के लिए विनिर्दिष्ट रूप से विनियोजित किए जाते हैं।
अनुच्छेद (Article) 28 – कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता
(1) राज्य-निधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।
(2) खंड (1) की कोई बात ऐसी शिक्षा संस्था को लागू नहीं होगी जिसका प्रशासन राज्य करता है किंतु जो किसी ऐसे विन्यास या न्यास के अधीन स्थापित हुई है जिसके अनुसार उस संस्था में धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है।
(3) राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली शिक्षा संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए या ऐसी संस्था में या उससे संलग्न स्थान में की जाने वाली धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिए तब तक बाध्य नहीं किया जाएगा जब तक कि उस व्यक्ति ने, या यदि वह अवयस्क है तो उसके संरक्षक ने, इसके लिए अपनी सहमति नहीं दे दी है।
भाग 3.5 (अनुच्छेद 29-30) – संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
अनुच्छेद (Article) 29 – अल्पसंख्यक-वर्गों के हितों का संरक्षण
(1) भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
(2) राज्य द्वारा पोषित या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद (Article) 30 – शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गों का अधिकार
(1) धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्र्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
(1क) खंड (1) में निर्दिष्ट किसी अल्पसंख्यक-वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित शिक्षा संस्था की संपत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधि बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी हो कि उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधिकार निर्बन्धित या निराकृत न हो जाए।
(2) शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक-वर्ग के प्रबंध में है।
भाग 3.6 (अनुच्छेद 32-35) – सांविधानिक उपचारों का अधिकार
अनुच्छेद (Article) 32 – इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार
(1) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्यवाहियों द्वारा उच्चतम न्यायालय में समावेदन करने का अधिकार प्रत्याभूत किया जाता है।
(2) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय को ऐसे निदेश या आदेश या रिट, जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, जो भी समुचित हो, निकालने की शक्ति होगी।
(3) उच्चतम न्यायालय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संसद, उच्चतम न्यायालय द्वारा खंड (2) के अधीन प्रयोक्तव्य किन्हीं या सभी शक्तियों का किसी अन्य न्यायालय को अपनी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रयोग करने के लिए विधि द्वारा सशक्त कर सकेगी।
(4) इस संविधान द्वारा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, इस अनुच्छेद द्वारा प्रत्याभूत अधिकार निलंबित नहीं किया जाएगा।
भाग 4 (अनुच्छेद 36-51) – राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
अनुच्छेद (Article) 36 – परिभाषा
इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, ”राज्य” का वही अर्थ है जो भाग 3 में है।
अनुच्छेद (Article) 37 – इस भाग में अंतर्विष्ट तत्त्वों का लागू होना
इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे किंतु फिर भी इनमें अधिकथित तत्त्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्त्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।
अनुच्छेद (Article) 39 – राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्त्व
राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनिश्चित रूप से–
(क) पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो;
(ख) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बंटा हो जिससे सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से साधन हो;
(ग) आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन-साधनों का सर्वसाधारण के लिए अहितकारी संक्रेंद्रण न हो;
(घ) पुरुषों और स्त्रियों दोनों का समान कार्य के लिए समान वेतन हो;
(ङ) पुरुष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्नय और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हों;
(च) बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएँ दी जाएँ और बालकों और अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए।]
अनुच्छेद (Article) 40 – ग्राम पंचायतों का संगठन
राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योषय बनाने के लिए आवश्यक हों।
अनुच्छेद (Article) 41 – कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार
राज्य अपनी आर्थिक सामनर्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।
अनुच्छेद (Article) 43 – कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि
राज्य, उपयुक्त विधान या आर्थिक संगठन द्वारा या किसी अन्य रीति से कृषि के, उद्योग के या अन्य प्रकार के सभी कर्मकारों को काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवनस्तर और अवकाश का संपूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएं तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया ग्रामों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद (Article) 43क – उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना
राज्य किसी उद्योग में लगे हुए उपक्रमों, स्थापनों या अन्य संगठनों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त विधान द्वारा या किसी अन्य रीति से कदम उठाएगा।
अनुच्छेद (Article) 44 – नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता
राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद (Article) 45 – बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध
राज्य, इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक, निःशुल्क और ओंनवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद (Article) 46 – अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि
राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उसकी संरक्षा करेगा।
अनुच्छेद (Article) 47 – पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्नय का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य
राज्य, अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने और लोक स्वास्नय के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में मानेगा और राज्य, विशिष्टतया, मादक पेयों और स्वास्नय के लिए हानिकर ओषधियों के, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद (Article) 48 – कृषि और पशुपालन का संगठन
राज्य, कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया गायों और बछड़ों तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्लों के परिरक्षण और सुधार के लिए और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाएगा।
अनुच्छेद (Article) 48क – पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा
राज्य, देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद (Article) 49 – राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण
अनुच्छेद (Article) 50 – कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण
राज्य की लोक सेवाओं में, न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक् करने के लिए राज्य कदम उठाएगा।
अनुच्छेद (Article) 51 – अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि
राज्य,
(क) अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का,
(ख) राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का,
(ग) संगठित लोगों के एक दूसरे से व्यवहारों में अंतरराष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने का, और
(घ) अंतरराष्ट्रीय विवादों के माध्य स्थम् द्वारा निपटारे के लिए प्रोत्साहन देने का,
प्रयास करेगा।
भाग 4A (अनुच्छेद 51A) – मूल कर्तव्य
अनुच्छेद (Article) 51क – मूल कर्तव्य
भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह–
(क) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे;
(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्र्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे;
(ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;
(घ) देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे;
(ङ) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है;
(च) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे;
(छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे;
(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे;
(झ) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले;
(]) यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे।]
भाग 5 (अनुच्छेद 52-151) – संघ
अनुच्छेद (Article) 52 – भारत का राष्ट्रपति
भारत का एक राष्ट्रपति होगा।
अनुच्छेद (Article) 53 – संघ की कार्यपालिका शक्ति
1) संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।
(2) पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संघ के रक्षा बलों का सर्वोच्च समादेश राष्ट्रपति में निहित होगा और उसका प्रयोग विधि द्वारा विनियमित होगा।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात–
(क) किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी राज्य की सरकार या अन्य प्राधिकारी को प्रदान किए गए कृत्य राष्ट्रपति को अंतरित करने वाली नहीं समझी जाएगी; या
(ख) राष्ट्रपति से भिन्न अन्य प्राधिकारियों को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद को निवारित नहीं करेगी।
अनुच्छेद (Article) 54 – राष्ट्रपति का निर्वाचन
राष्ट्रपति का निर्वाचन ऐसे निर्वाचकगण के सदस्य करेंगे जिसमें–
(क) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य; और
(ख) राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य, होंगे।
स्पष्टीकरण–इस अनुच्छेद और अनुच्छेद 55 में, ”राज्य” के अंतर्गत दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र और पांडिचेरी संघ राज्यक्षेत्र हैं।]
अनुच्छेद (Article) 61 – राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया
(1) जब संविधान के ओंतक्रमण के लिए राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना हो, तब संसद का कोई सदन आरोप लगाएगा।
(2) ऐसा कोई आरोप तब तक नहीं लगाया जाएगा जब तक कि—
(क) ऐसा आरोप लगाने की प्रस्थापना किसी ऐसे संकल्प में अंतर्विष्ट नहीं है, जो कम से कम चौदह दिन की ऐसी लिखित सूचना के दिए जाने के पश्चात् प्रस्तावित किया गया है जिस पर उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम एक-चौथाई सदस्यों ने हस्ताक्षर करके उस संकल्प को प्रस्तावित करने का अपना आशय प्रकट किया है; और
(ख) उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा ऐसा संकल्प पारित नहीं किया गया है।
(3) जब आरोप संसद के किसी सदन द्वारा इस प्रकार लगाया गया है तब दूसरा सदन उस आरोप का अन्वेषण करेगा या कराएगा और ऐसे अन्वेषण में उपस्थित होने का तथा अपना प्रतिनिधित्व कराने का राष्ट्रपति को अधिकार होगा।
(4) यदि अन्वेषण के परिणामस्वरूप यह घोषित करने वाला संकल्प कि राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाया गया आरोप सिद्ध हो गया है, आरोप का अन्वेषण करने या कराने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार पारित किए जाने की तारीख से राष्ट्रपति को उसके पद से हटाना होगा।
अनुच्छेद (Article) 63 – भारत का उपराष्ट्रपति
भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।
अनुच्छेद (Article) 64 – उपराष्ट्रपति का राज्य सभा का पदेन सभापति होना
उपराष्ट्रपति, राज्य सभा का पदेन सभापति होगा और अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा:
परंतु जिस किसी अवधि के दौरान उपराष्ट्रपति, अनुच्छेद 65 के अधीन राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है या राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन करता है, उस अवधि के दौरान वह राज्य सभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करेगा और वह अनुच्छेद 97 के अधीन राज्य सभा के सभापति को संदेय वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होगा।
अनुच्छेद (Article) 66 – उपराष्ट्रपति का निर्वाचन
(1) उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा।
(2) उपराष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान उपराष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।
(3) कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह–
(क) भारत का नागरिक है, (ख) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है, और
(ग) राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है।
(4) कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा।
स्पष्टीकरण–इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, कोई व्यक्ति केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल है अथवा संघ का या किसी राज्य का मंत्री है।
अनुच्छेद (Article) 72 – क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राष्ट्रपति की शक्ति
(1) राष्ट्रपति को, किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की–
(क) उन सभी मामलों में, जिनमें दंड या दंडादेश सेना न्यायालय ने दिया है,
(ख) उन सभी मामलों में, जिनमें दंड या दंडादेश ऐसे विषय संबंधी किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए दिया गया है जिस विषय तक संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है,
(ग) उन सभी मामलों में, जिनमें दंडादेश, मृत्यु दंडादेश है, शक्ति होगी।
(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात संघ के सशस्त्र बलों के किसी आफिसर की सेना न्यायालय द्वारा पारित दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की विधि द्वारा प्रदत्त शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी।
(3) खंड (1) के उपखंड (ग) की कोई बात तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रयोक्तव्य मृत्यु दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी।
अनुच्छेद (Article) 74 – राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रि-परिषद
(1) राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परिषद होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में ऐसी सलाह के अनुसार कार्य करेगा:]
परंतु राष्ट्रपति मंत्रि-परिषद से ऐसी सलाह पर साधारणतया या अन्यथा पुनर्विचार करने की अपेक्षा कर सकेगा और राष्ट्रपति ऐसे पुनर्विचार के पश्चात् दी गई सलाह के अनुसार कार्य करेगा।]
(2) इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जांच नहीं की जाएगी कि क्या मंत्रियों ने राष्ट्रपति को कोई सलाह दी, और यदि दी तो क्या दी।
अनुच्छेद (Article) 76 – भारत का महान्यायवादी
(1) राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा।
(2) महान्यायवादी का यह कर्तव्य होगा कि वह भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करे जो राष्ट्रपति उसको समय-समय पर निर्देशित करे या सौंपे और उन कृत्यों का निर्वहन करे जो उसको इस संविधान अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन प्रदान किए गए हों।
(3) महान्यायवादी को अपने कर्तव्यों के पालन में भारत के राज्यक्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा।
(4) महान्यायवादी, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राष्ट्रपति अवधारित करे।
अनुच्छेद (Article) 79 – संसद का गठन
संघ के लिए एक संसद होगी जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी जिनके नाम राज्य सभा और लोकसभा होंगे।
अनुच्छेद (Article) 80 – राज्य सभा की संरचना
(1) [ राज्य सभा] –
(क) राष्ट्रपति द्वारा खंड (3) के उपबंधों के अनुसार नामनिर्देशित किए जाने वाले बारह सदस्यों, और
(ख) राज्यों के 5[और संघ राज्यक्षेत्रों के] दो सौ अड़तीस से अनधिक प्रतिनिधियों, से मिलकर बनेगी।
(2) राज्यसभा में राज्यों के और 5[संघ राज्यक्षेत्रों के] तिनिधियों द्वारा भरे जाने वाले स्थानों का आबंटन चौथी अनुसूची में इस निमित्त अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार होगा।
(3) राष्ट्रपति द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) के अधीन नामनिर्देशित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें निम्नलिखित विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, अर्थात् : —
साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा।
(4) राज्य सभा में प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उस राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाएगा।
(5) राज्य सभा में 7[संघ राज्यक्षेत्रों] के प्रतिनिधि ऐसी रीति से चुने जाएँगे जो संसद विधि द्वारा विहित करे।
अनुच्छेद (Article) 81 – लोकसभा की संरचना
(1) अनुच्छेद 331 के उपबंधों के अधीन रहते हुए 3] लोकसभा–
(क) राज्यों में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए 4[पाँच सौ तीस] से अनधिक 4[सदस्यों], और
(ख) संघ राज्यक्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए ऐसी रीति से, जो संसद विधि द्वारा उपबंधित करे, चुने हुए 5[बीस] से अधिक [सदस्यों], से मिलकर बनेगी।
(2) खंड (1) के उपखंड (क) के प्रयोजनों के लिए,–
(क) प्रत्येक राज्य को लोकसभा में स्थानों का आबंटन ऐसी रीति से किया जाएगा कि स्थानों की संख्या से उस राज्य की जनसंख्या का अनुपात सभी राज्यों के लिए यथासाध्य एक ही हो, और
(ख) प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो :
6[परन्तु इस खंड के उपखंड (क) के उपबंध किसी राज्य को लोकसभा में स्थानों के आबंटन के प्रयोजन के लिए तब तक लागू नहीं होंगे जब तक उस राज्य की जनसंख्या साठ लाख से अधिक नहीं हो जाती है।]
(3) इस अनुच्छेद में, ”जनसंख्या” पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आँकड़े प्रकाशित हो गए हैं;] 7[परन्तु इस खंड में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आँकड़े प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन 8[2026] के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आँकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, 9[यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह, — खंड (2) के उपखंड (क) और उस खंड के परन्तुक के प्रयोजनों के लिए 1971 की जनगणना के प्रति निर्देश है; और खंड (2) के उपखंड (ख) के प्रयोजनों के लिए 10[2001] की जनगणना के प्रतिनिर्देश है।]]
अनुच्छेद (Article) 83 – संसद के सदनों का अवधि
(1) राज्य सभा का विघटन नहीं होगा, किन्तु उसके सदस्यों में से यथासंभव निकटतम एक-तिहाई सदस्य, संसद द्वारा विधि द्वारा इस निमित्त किए गए उपबंधों के अनुसार, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य शीघ्र निवृत्त हो जाएँगे।
(2) लोकसभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से 1[पाँच वर्ष] तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं और 1[पाँच वर्ष] की उक्त अवधि की समाप्ति का परिणाम लोकसभा का विघटन होगा; परन्तु उक्त अवधि को, जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब, संसद विधि द्वारा, ऐसी अवधि के लिए बढ़ा सकेगी, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात् उसका विस्तार किसी भी दशा में छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा।
अनुच्छेद (Article) 93 – लोकसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
लोकसभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने दो सदस्यों को अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी और जब-जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है तब-तब लोकसभा किसी अन्य सदस्य को, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनेगी।
अनुच्छेद (Article) 105 – संसद के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार आदि
1) इस संविधान के उपबंधों और संसद की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन रहते हुए, संसद में वाक्-स्वातंत्र्य होगा।
(2) संसद में या उसकी किसी समिति में संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरूद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरूद्ध संसद के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन, पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
(3) अन्य बातों में संसद के प्रत्येक सदन की और प्रत्येक सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ ऐसी होंगी जो संसद, समय-समय पर, विधि द्वारा,परिनिश्चित करे और जब तक वे इस प्रकार परिनिश्चित नहीं की जाती हैं तब तक वही होंगी जो संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 15 के प्रवृत्त होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं]।
(4) जिन व्यक्तियों को इस संविधान के आधार पर संसद के किसी सदन या उसकी किसी समिति में बोलने का और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार है, उनके संबंध में खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे संसद के सदस्यों के संबंध में लागू होते हैं।
अनुच्छेद (Article) 109 – धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया
(1) धन विधेयक राज्य सभा में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा।
(2) धन विधेयक लोकसभा द्वारा पारित किए जाने के पश्चात् राज्य सभा को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित किया जाएगा और राज्य सभा विधेयक की प्राप्ति की तारीख से चौदह दिन की अवधि के भीतर विधेयक को अपनी सिफारिशों सहित लोकसभा को लौटा देगी और ऐसा होने पर लोकसभा, राज्य सभा की सभी या किन्हीं सिफारिशों को स्वीकर या अस्वीकार कर सकेगी।
(3) यदि लोकसभा, राज्य सभा की किसी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है तो धन विधेयक राज्य सभा द्वारा सिफारिश किए गए और लोकसभा द्वारा स्वीकार किए गए संशोधनों सहित दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया समझा जाएगा।
(4) यदि लोकसभा, राज्यसभा की किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है तो धन विधेयक, राज्यसभा द्वारा सिफारिश किए गए किसी संशोधन के बिना, दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।
(5) यदि लोकसभा द्वारा पारित और राज्यसभा को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित धन विधेयक उक्त चौदह दिन की अवधि के भीतर लोकसभा को नहीं लौटाया जाता है तो उक्त अवधि की समाप्ति पर वह दोनों सदनों द्वारा, उस रूप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।
अनुच्छेद (Article) 110 – ''धन विधेयक'' की परिभाषा
(1) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, कोई विधेयक धन विधेयक समझा जाएगा यदि उसमें केवल निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों से संबंधित उपबंध हैं, अर्थात् :–
(क) किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन;
(ख) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन अथवा भारत सरकार द्वारा अपने पर ली गई या ली जाने वाली किन्हीं वित्तीय बाध्यताओं से संबंधित विधि का संशोधन;
(ग) भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी विधि में धन जमा करना या उसमें से धन निकालना;
(घ) भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग;
(ङ) किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा; या
(च) भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा; या
(छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय का आनुषंगिक कोई विषय।
(2) कोई विधेयक केवल इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीसों की या की गई सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है।
(3) यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर लोकसभा के अध्यक्ष का विनिश्चय अंतिम होगा।
(4) जब धन विधेयक अनुच्छेद 109 के अधीन राज्य सभा को पारेषित किया जाता है और जब वह अनुच्छेद 111 के अधीन अनुमति के लिए राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तब प्रत्येक धन विधेयक पर लोकसभा के अध्यक्ष के हस्ताक्षर सहित यह प्रमाण पृष्ठांकित किया जाएगा कि वह धन विधेयक है।
अनुच्छेद (Article) 112 – वार्षिक वित्तीय विवरण
(1) राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में संसद के दोनों सदनों के समक्ष भारत सरकार की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित प्राप्तियों और व्यय का विवरण रखवाएगा जिसे इस भाग में ”वार्षिक वित्तीय विवरण” कहा गया है।
(2) वार्षिक वित्तीय विवरण में दिए हुए व्यय के प्राक्कलनों में–
(क) इस संविधान में भारत की संचित निधि पर भारित व्यय के रूप में वर्णित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियाँ, और
(ख) भारत की संचित निधि में से किए जाने के लिए प्रस्थापित अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियाँ, पृथक-पृथक दिखाई जाएँगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगा।
(3) निम्नलिखित व्यय भारत की संचित निधि पर भारित व्यय होगा, अर्थात्: —
(क) राष्ट्रपति की उपलब्धियाँ और भत्ते तथा उसके पद से संबंधित अन्य व्यय;
(ख) राज्यसभा के सभापति और उपसभापति के तथा लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते;
(ग) ऐसे ऋण भार, जिनका दायित्व भारत सरकार पर है, जिनके अंतर्गत ब्याज, निक्षेप निधि भार और मोचन भार तथा उधार लेने और ऋण सेवा और ऋण मोचन से संबंधित अन्य व्यय हैं;
(घ) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबंध में संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन;
फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबंध में संदेय पेंशन;
उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबंध में दी जाने वाली पेंशन, जो भारत के राज्यक्षेत्र के अंतर्गत किसी क्षेत्र के संबंध में का प्रयोग करता है या जो भारत डोमिनियन के राज्यपाल वाले प्रांत के अंतर्गत किसी क्षेत्र के संबंध में इस संविधान के प्रारंभ से पहले किसी भी समय का प्रयोग करता था;
(ङ) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को, या उसके संबंध में, संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन;
(च) किसी न्यायालय या माध्यम ओंधकरण के निर्णय, डिक्री या पंचाट की तुष्टि के लिए अपेक्षित राशियाँ;
(छ) कोई अन्य व्यय जो इस संविधान द्वारा या संसद द्वारा, विधि द्वारा, इस प्रकार भारित घोषित किया जाता है।
अनुच्छेद (Article) 114 – विनियोग विधेयक
(1) लोकसभा द्वारा अनुच्छेद 113 के अधीन अनुदान किए जाने के पश्चात्, यथाशक्य शीघ्र, भारत की संचित निधि में से–
(क) लोकसभा द्वारा इस प्रकार किए गए अनुदानों की, और
(ख) भारत की संचित निधि पर भारित, किन्तु संसद के समक्ष पहले रखे गए विवरण में दर्शित रकम से किसी भी दशा में अनधिक व्यय की,
पूर्ति के लिए अपेक्षित सभी धनराशियों के विनियोग का उपबंध करने के लिए विधेयक पुर:स्थापित किया जाएगा।
(2) इस प्रकार किए गए किसी अनुदान की रकम में परिवर्तन करने या अनुदान के लक्ष्य को बदलने अथवा भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की रकम में परिवर्तन करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, ऐसे किसी विधेयक में संसद के किसी सदन में प्रस्थापित नहीं किया जाएगा और पीठासीन व्यक्ति का इस बारे में विनिश्चय अंतिम होगा कि कोई संशोधन इस खंड के अधीन अग्राह्य है या नहीं।
(3) अनुच्छेद 115 और अनुच्छेद 16 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत की संचित निधि में से इस अनुच्छेद के उपबंधों के अनुसार पारित विधि द्वारा किए गए विनियोग के अधीन ही कोई धन निकाला जाएगा, अन्यथा नहीं।
अनुच्छेद (Article) 123 – संसद के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति
अनुच्छेद (Article) 124 – उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन
अनुच्छेद (Article) 125 – न्यायाधीशों के वेतन आदि
अनुच्छेद (Article) 126 – कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति
अनुच्छेद (Article) 127 – तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति
अनुच्छेद (Article) 128 – उच्चतम न्यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति
अनुच्छेद (Article) 129 – उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना
अनुच्छेद (Article) 130 – उच्चतम न्यायालय का स्थान
अनुच्छेद (Article) 136 – अपील के लिए उच्चतम न्यायालय की विशेष इजाजत
अनुच्छेद (Article) 137- निर्णयों या आदेशों का उच्चतम न्यायालयों द्वारा पुनर्विलोकन
अनुच्छेद (Article) 141 – उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होना
अनुच्छेद (Article) 148 – भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक
अनुच्छेद (Article) 149 – नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के कर्तव्य और शक्तियाँ
भाग 6 (अनुच्छेद 36-237) – राज्य
अनुच्छेद (Article) 153 – राज्यों के राज्यपाल
अनुच्छेद (Article) 154 – राज्य की कार्यपालिका शक्ति
अनुच्छेद (Article) 161- क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राज्यपाल की शक्ति
अनुच्छेद (Article) 165 – राज्य का महाधिवक्ता
अनुच्छेद (Article) 213 – विधान-मंडल के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राज्यपाल की शक्ति
अनुच्छेद (Article) 214 – राज्यों के लिए उच्च न्यायालय
अनुच्छेद (Article) 215 – उच्च न्यायालयों का अभिलेख न्यायालय होना
अनुच्छेद (Article) 226 – कुछ रिट निकालने की उच्च न्यायालय की शक्ति
अनुच्छेद (Article) 233 – जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति
अनुच्छेद (Article) 235 – अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण
भाग 7 (अनुच्छेद 238) – निरस्त
भाग 8 (अनुच्छेद 239-242) – संघ राज्य क्षेत्र
अनुच्छेद (Article) 239 – संघ राज्यक्षेत्रों का प्रशासन
अनुच्छेद (Article) 240 – कुछ संघ राज्यक्षेत्रों के लिए विनियम बनाने की राष्ट्रपति की शक्ति
अनुच्छेद (Article) 241 – संघ राज्यक्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय
भाग 9 [अनुच्छेद 243(243क-243ण)] – पंचायत
अनुच्छेद (Article) 243 परिभाषा
इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,–
(क) ”जिला” से किसी राज्य का जिला अभिप्रेत है;
(ख) ”ग्राम सभा” से ग्राम स्तर पर पंचायत के क्षेत्र के भीतर समाविष्ट किसी ग्राम से संबंधित निर्वाचक नामावली में रजिस्ट्रीकृत व्यक्तियों से मिलकर बना निकाय अभिप्रेत है;
(ग) ”मध्यवर्ती स्तर” से ग्राम और जिला स्तरों के बीच का ऐसा स्तर अभिप्रेत है जिसे किसी राज्य का राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजनों के लिए, लोक अधिसूचना द्वारा, मध्यवर्ती स्तर के रूप में विनिर्दिष्ट करे
(घ) ”पंचायत” से ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अनुच्छेद 243ख के अधीन गठित स्वायत्त शासन की कोई संस्था (चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो) अभिप्रेत है;
(ङ) ”पंचायत क्षेत्र” से पंचायत का प्रादेशिक क्षेत्र अभिप्रेत है;
(च) ”जनसंख्या ” से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आँकड़े प्रकाशित हो गए हैं;
(छ) ”ग्राम” से राज्यपाल द्वारा इस भाग के प्रयोजनों के लिए, लोक अधिसूचना द्वारा, ग्राम के रूप में विनिर्दिष्ट ग्राम अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत इस प्रकार विनिर्दिष्ट ग्रामों का समूह भी है।
अनुच्छेद (Article) 243क – ग्राम सभा
ग्राम सभा, ग्राम स्तर पर ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कॄत्यों का पालन कर सकेगी, जो किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा, विधि द्वारा, उपबंधित किए जाएं।
अनुच्छेद (Article) 243ख – पंचायतों का गठन
(1) प्रत्येक राज्य में ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तर पर इस भाग के उपबंधों के अनुसार पंचायतों का गठन किया जाएगा।
(2) खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत का उस राज्य में गठन नहीं किया जा सकेगा जिसकी जनसंख्या बीस लाख से अनधिक है।
भाग 9A (अनुच्छेद 243त-243यछ) – नगरपालिकाएँ
भाग 9B (अनुच्छेद 243यज-243यन) – सहकारी समितियाँ
भाग 10 (अनुच्छेद 244-244क) – अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र
भाग 11 (अनुच्छेद 245-263) – संघ और राज्यों के बीच संबंध
अनुच्छेद (Article) 245 – संसद द्वारा और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों का विस्तार
अनुच्छेद (Article) 248 – अवशिष्ट विधायी शक्तियाँ
अनुच्छेद (Article) 249 – राज्य सूची में के विषय के संबंध में राष्ट्रीय हित में विधि बनाने की संसद की शक्ति
अनुच्छेद (Article) 262 – अंतरराज्यिक नदियों या नदी-दूनों के जल संबंधी विवादों का न्यायनिर्णयन
अनुच्छेद (Article) 263 – अंतरराज्य परिषद के संबंध में उपबंध
भाग 12 (अनुच्छेद 264-300क) –वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद
अनुच्छेद (Article) 266 – भारत और राज्यों की संचित निधियाँ और लोक लेखे
अनुच्छेद (Article) 267 – आकस्मिकता निधि
अनुच्छेद (Article) 280 – वित्त आयोग
अनुच्छेद (Article) 300क – विधि के प्राधिकार के बिना व्यक्तियों को संपत्ति से वंचित न किया जाना
भाग13 (अनुच्छेद 301-307) – भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम
अनुच्छेद (Article) 302- व्यापार, वाणिज्य और समागम पर निर्बंधन अधिरोपित करने की संसद की शाक्ति
भाग 14 (अनुच्छेद 308-323) – संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ
अनुच्छेद (Article) 312 – अखिल भारतीय सेवाएँ
अनुच्छेद (Article) 315 – संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग
अनुच्छेद (Article) 320 – लोक सेवा आयोगों के कृत्य
भाग 14A (अनुच्छेद 323A-323B) – अधिकरण
अनुच्छेद (Article) 323क – प्रशासनिक अधिकरण
भाग 15 (अनुच्छेद 324-329) – निर्वाचन
अनुच्छेद (Article) 324 -निर्वाचनों के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना
अनुच्छेद (Article) 325 – धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी व्यक्ति का निर्वाचक-नामावली में सम्मिलित किए जाने के लिए अपात्र न होना और उसके द्वारा किसी विशेष निर्वाचक-नामावली में सम्मिलित किए जाने का दावा न किया जाना
अनुच्छेद (Article) 326 – लोक सभा और राज्यों की विधान सभाओं के लिए निर्वाचनों का वयस्क मताधिकार के आधार पर होना
भाग 16 (अनुच्छेद 330-342) – कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध
अनुच्छेद (Article) 338 – राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग
अनुच्छेद (Article) 338क – राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
अनुच्छेद (Article) 340 – पिछड़े वर्गों की दशाओं के अन्वेषण के लिए आयोग की नियुक्ति
(1) राष्ट्रपति भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं के और जिन कठिनाइयों को वे झेल रहे हैं उनके अन्वेषण के लिए और उन कठिनाइयों को दूर करने और उनकी दशा को सुधारने के लिए संघ या किसी राज्य द्वारा जो उपाय किए जाने चाहिएं उनके बारे में और उस प्रयोजन के लिए संघ या किसी राज्य द्वारा जो नुदान किए जाने चाहिएं और जिन शर्तों के अधीन वे अनुदान किए जाने चाहिएं उनके बारे में सिफारिश करने के लिए, आदेश द्वारा, एक आयोग नियुक्त कर सकेगा जो ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनेगा जो वह ठीक समझे और ऐसे आयोग को नियुक्त करने वाले आदेश में आयोग द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया परिनिाश्चित की जाएगी।
(2) इस प्रकार नियुक्त आयोग अपने को निर्देशित विषयों का अन्वेषण करेगा और राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देगा, जिसमें उसके द्वारा पात्र गए तथ्य उपवार्णित किए जाएंगे और जिसमें ऐसी सिफारिशें की जाएंगी जिन्हें आयोग उचित समझे।
(3) राष्ट्रपति, इस प्रकार दिए गए प्रतिवेदन की एक प्रति, उस पर की गई कार्रवाई को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन सहित, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा।
भाग 17 (अनुच्छेद 343-351) – राजभाषा
अनुच्छेद (Article) 343 – संघ की राजभाषा
अनुच्छेद (Article) 345- राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ
अनुच्छेद (Article) 348 – उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा
अनुच्छेद (Article) 351-हिन्दी भाषा के विकास के लिए निदेश
भाग 18 (अनुच्छेद 352-360) – आपात उपबंध
अनुच्छेद (Article) 352-आपात की उद्घोषणा
नुच्छेद (Article) 356- राज्यों में सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध
अनुच्छेद (Article) 360- वित्तीय आपात के बारे में उपबंध
भाग 19 (अनुच्छेद 361-367) – प्रकीर्ण
अनुच्छेद (Article) 361 – राष्ट्रपति और राज्यपालों और राजप्रमुखों का संरक्षण
भाग 20 (अनुच्छेद 368) – संविधान का संशोधन
अनुच्छेद (Article) 368 – संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया
भाग 21 (अनुच्छेद 369-372) – अस्थाई, संकरमरकालीन और विशेष उपबंध
अनुच्छेद (Article) 370 – जम्मू कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में अस्थाई उपबंध
अनुच्छेद (Article) 371क – नागालैंड राज्य के सम्बन्ध में विशेष उपबंध
अनुच्छेद (Article) 371-ञ – कर्नाटका- हैदराबाद राज्य के सम्बन्ध में विशेष उपबंध
भाग 22 (अनुच्छेद 392-395) – संक्षिप्त नाम, प्रारंभ, 1[हिंदी में प्राधिकृत पाठ] और निरसन
अनुच्छेद (Article) 393 – संक्षिप्त नाम
इस संविधान का संक्षिप्त नाम भारत का संविधान है।
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